कड़वी यादें – जब भगवान् ने साथ दिया – ”दिल से दिल तक”
आज कल शादी की उम्र 27 28 साल हो गयी है और ये आम बात है। किन्तु हमारे यहाँ अच्छा रिश्ता आते ही लड़की को बंधन में बाँध दिआ जाता है। इसी के चलते मेरी शादी भी 24 की उम्र में हो गयी थी। सोचा था नयी नयी शादी को खूब एन्जॉय करूंगी पर भगवान् की मर्ज़ी के आगे किसी की नहीं चलती और जल्दी ही मुझे पता चला मैं माँ बनने वाली हूँ। मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी की सब कैसे होगा इतना जल्दी, अभी अभी शादी हुई थी और इतनी जल्दी एक और ज़िमेदारी को मै कैसे संभाल पाउंगी। फिर सबने समझाया की माँ बनने का एहसास क्या होता है और ये सही टाइम है इस ज़िम्मेदारी को उठाने का और जिस तरह भगवान् ने ये खुशखबरी दी है उसी तरह वो सँभालने में भी मदद करेगा।
मैंने ख़ुशी ख़ुशी अपनी प्रेगनेंसी को स्वीकारा और खुद की ज्यादा केयर करने लगी और कैसे 9 महीने बीत गए पता भी नहीं चला बिना किसी कॉम्प्लीकेशन्स के। और वो दिन 10/12/2011 का, जब अक्षत हमारी लाइफ में आया और हमारे दिन बदलते गए, हमारी लाइफ पहले से ज्यादा खुशहाल हो गयी पर शायद ये कुछ दिन की ख़ुशी थी।जैसे ही अक्षत तीन महीने का हुआ, मैंने उसकी चेस्ट पे एक सिस्ट जैसा कुछ फील किआ और हम फ़ौरन डॉक्टर के पास गए जहाँ हमें सिस्ट होने का कन्फर्मेशन मिला और पता चला की इस नन्ही सी जान को सर्जरी जैसी चीज़ से गुजरना पड़ेगा।
किसी भी पेरेंट्स के लिए इतनी छोटी उम्र के बच्चे की सर्जरी करवाना किसी नाईटमेयर से कम नहीं होगा, फिर चाहे वो सर्जरी माइनर ही क्यों ना हो।
सर्जरी से पहले कुछ टेस्ट्स होने थे और वो टेस्ट्स भी हमारे लिए बहुत दुखदायी थे क्यूंकि उनमे सैम्पल्स लेने के लिए डोक्टर्स को अक्षत के शरीर से तीन चार अलग अलग जगह से सैम्पल्स लेने थे, जैसे चेस्ट, थाइज़, आर्म्। जैसे ही वो सैंपल लेने लगते मेरी रूह काँप जाती और आंसूं बहने लगते जो रुकने का नाम नहीं लेते थे। कहते हैं, पिता रोता नहीं है सिर्फ दर्द मेहसूस करता है, लेकिन अपने बच्चे को इस हालत में देखके कौन पिता खुद को रोने से रोक पाया, और मेरे पति भी बहुत रोये। हमारी ऐसी हालत देख कर डॉक्टर्स हमें बहार भेज देते यह कहके की हम अक्षत को नहीं देख पाएंगे और ये सच भी था।
आप सोचिये जब ये टेस्ट्स इतने दर्द देने वाले थे तो सर्जरी के दिन हमारा क्या हाल हुआ होगा। सर्जरी के दिन से पहले मैं रोज़ भगवान् से लड़ती और उनसे दुआ भी करती की जल्दी सब नार्मल हो जाये। इसी तरह सर्जरी का दिन आया और हम जैसे ही हॉस्पिटल पहुंचे वार्ड बॉय ने मुझसे अक्षत को अपनी गोद में लिया और उसका माथा चूमा। ऑपरेशन थिएटर में ले जाने से पहले डॉक्टर्स ने हमें सांत्वना दी की घबराने की कोई बात नहीं है क्यूंकि माइनर सर्जरी है।
जैसे ही उसे मेरी आँखों से दूर ले जाया गया, मैं खुद के इमोशंस को कण्ट्रोल नहीं कर पायी और बहुत जोर से रोने लगी। सबने मुझे समझाने की बहुत
कोशिश की की ये बहुत छोटी सी सर्जरी है और अक्षत अभी कुछ देर में तेरे पास आ जायेगा और वो भी बिलकुल ठीक होकर। पर एक माँ होने के नाते ये दर्द मेरे अलावा उस टाइम और कोई नहीं समझ सकता था की अपने छोटे से बच्चे को एक ऑपरेशन थिएटर में भेजना क्या होता है।
मेरे आंसू ये सोचकर रुक नहीं रहे थे की उस नन्ही सी जान के शरीर पर कट लगाया जायेगा और वो अकेला है उसकी माँ उसके पास नहीं है उसकी इस हालत मे। ऑपरेशन 3 से 4 घंटे चला और मेरे लिए एक एक पल निकलना मुश्किल हो रहा था। सब भगवान् से प्रार्थना करने में लगे हुए थे और शायद उन्ही दुआओं का असर था की अक्षत 4 घंटे बाद बहार आया। जैसे ही मैंने उसकी पहली झलक देखि, मेरी जान में जान आयी और मैंने उसे अपनी गोद में लिया। वो एक पल था जो मै कभी भूल नहीं सकती और आज तक ऊपर वाले के लिए थैंकफुल हूँ।
आज अक्षत 10 साल का है और बिलकुल ठीक है। लेकिन जब भी मैं उन दिनों को याद करती हूँ या अक्षत की चेस्ट पे निशान देखती हूँ, मुझे बहुत तकलीफ होती है और खुद को रोने से नहीं रोक पाती हूँ।
एन्ड में सबसे यही कहना चाहती हु की भगवान् और उसके तरीकों पे भरोसा रखें। उसकी मर्ज़ी के बिना कुछ नहीं होता। और मैं हमेशा भगवान् से यही दुआ करती हूँ की किसी माँ बाप को ऐसा दिन ना दिखाए।
बहुत सुंदर लिखा आपने
Beautiful lines.